यह 'मैं' कौन है?
कहां पर उसके स्थिति है, ये सब जानना होगा। जिसको जानने से सब कुछ जान सकते हैं, वह 'मै' को अर्थात हमें खुद को जानने की जरूरत है।
आत्मज्ञान का अर्थ 'मैं ’का ज्ञान है। 'मैं' को नहीं देखा जाता, उपलब्ध कर सकता या समझ सकता है।
जितना अधिक आप 'मैं' को, अर्थात स्वयं को जान सकेंगे, उतना ही अधिक ईश्वर तथा ब्रह्मांड का रहस्य आपके पास स्पष्ट होता जायेगा।
'मैं ’को जानने के उद्देश्य से ही सृष्टिलीला (महर्षि महामानस के महान रचना सृष्टितत्व देखें) शुरू हुआ है।
जब 'मैं' को पूरी तरह से जाना जायेगा, तबाही मोक्ष प्राप्त होगा। उस समय सृष्टि भी समाप्त हो जायेगी।
महामनन' आत्म-ध्यान~ 'मैं' का ध्यान है।